Wednesday, 16 December 2015
SUNITA KATYAL POETRY: हाले दिल
SUNITA KATYAL POETRY: हाले दिल: रफ्ता रफ्ता रात यूहीं ढलती रही दिल में तेरी याद की छुरियाँ सी चलती रहीं दिल में उठे तूफ़ान की कानों कान न हुई किसी को खबर सुबह सुर्ख आँख...
Thursday, 19 November 2015
कुछ और बन जाते है.……
तुम मिश्री की डली बन जाऔ,
मैं दूध बन जाता हूँ ,
तुम मुझमे घुल जाऔ।
ऐसा करो तुम ढाई साल की बच्ची बन जाऔ ,
मैं मिश्री घुला दूध हूँ मीठा ,
मुझे एक साँस में पी जाऔ।
अब मैं मैदान हूँ ,
तुम्हारे सामने दूर तक फैला हुआ ,
मुझमे दौड़ो। मैं पहाड़ हूँ।
मेरे कन्धो पर चङो और फिसलो ,
मैं सेमल का पेड़ हूँ ,
मुझे ज़ोर -ज़ोर से झकझोरो और
मेरी रुई को हवा की तमाम परतों में
बादलो के छोटे-छोटे टुकड़ों की तरह
उड़ जाने दो।
ऐसा करता हूँ की मैं
अखरोट बन जाता हूँ
तुम उसे चुरालो और किसी कौने में छुप कर उसे चुपचाप तोड़ो
जेहुँ का दाना बन जाता हूँ मैं ,
तूम धूप बन जाऔ ,
मिटी ,हवा ,पानी बन कर मुझे उगाओ।
मेरे भीतर के रिक्त कोशो में लुका छिपी खेलो ,
या कोपल होकर मेरी किसी भी गाँठ से कही से भी तुरंत फूट जाऔ।
तुम अँधेरा बन जाऔ ,
मैं बिल्ली बन दबे पाँव चलूँगा चोरी-चोरी।
क्यों न ऐसा करे मैं चीनी मिटी का प्याला बन जाऊ और तुम तश्तरी ,
और हम कही से गिर कर टूट जाते है सुबह-सुबह।
या मैं गुबारा बनता हूँ ,नील रंग का,
तुम उसके भीतर की हवा बन कर फेलो ,
और बीच आकाश में फ़ूट जाऔ।
या फिर हम ऐसा करते है ,के हम
कुछ और बन जाते है.……
मैं दूध बन जाता हूँ ,
तुम मुझमे घुल जाऔ।
ऐसा करो तुम ढाई साल की बच्ची बन जाऔ ,
मैं मिश्री घुला दूध हूँ मीठा ,
मुझे एक साँस में पी जाऔ।
अब मैं मैदान हूँ ,
तुम्हारे सामने दूर तक फैला हुआ ,
मुझमे दौड़ो। मैं पहाड़ हूँ।
मेरे कन्धो पर चङो और फिसलो ,
मैं सेमल का पेड़ हूँ ,
मुझे ज़ोर -ज़ोर से झकझोरो और
मेरी रुई को हवा की तमाम परतों में
बादलो के छोटे-छोटे टुकड़ों की तरह
उड़ जाने दो।
ऐसा करता हूँ की मैं
अखरोट बन जाता हूँ
तुम उसे चुरालो और किसी कौने में छुप कर उसे चुपचाप तोड़ो
जेहुँ का दाना बन जाता हूँ मैं ,
तूम धूप बन जाऔ ,
मिटी ,हवा ,पानी बन कर मुझे उगाओ।
मेरे भीतर के रिक्त कोशो में लुका छिपी खेलो ,
या कोपल होकर मेरी किसी भी गाँठ से कही से भी तुरंत फूट जाऔ।
तुम अँधेरा बन जाऔ ,
मैं बिल्ली बन दबे पाँव चलूँगा चोरी-चोरी।
क्यों न ऐसा करे मैं चीनी मिटी का प्याला बन जाऊ और तुम तश्तरी ,
और हम कही से गिर कर टूट जाते है सुबह-सुबह।
या मैं गुबारा बनता हूँ ,नील रंग का,
तुम उसके भीतर की हवा बन कर फेलो ,
और बीच आकाश में फ़ूट जाऔ।
या फिर हम ऐसा करते है ,के हम
कुछ और बन जाते है.……
Sunday, 15 November 2015
Friday, 6 November 2015
With the growing protests by academicians,artists and intellectuals in a way by returning their awards, the word that keeps beeping into my head is "INTOLERANCE". I think its not a right word to be used for lynching, shooting , burning and mass murdering of fellow human beings .
"INTOLERANCE" means "unwillingness to accept views,beliefs,or behaviors that differ from one's own".
But these activities seems to me like they are part of some MODEL .The model that could not be completed in previous years (eg. 1984,2002). Though current government has perfection in applying this model , the previous amateurs cannot be left out . Let's try to look at it
ASSUMPTIONS:-
(1)India is a Hindu nation.
(2)Only Politician or elites can practice "Freedom of speech".
(3) You can easily manipulate the Indian Minds.
(4)Today's youth is suffering from short term memory loss.
(5)All the citizens are too busy with their daily cious that no one cares what's going on in the parliament.
AIM:-
DISMANTLE THE LARGEST DEMOCRACY AND MAKE FUN OF SECULARISM.
STEPS TO FOLLOW:-
(1)Anything you don't like or enjoy just say "It's against our Culture".
(2)Always have Godmen at your side . Remember Karl Marx said "Religion is the opium of masses".
(3)Easiest way to legitimize some thing is through religion.
(4) Britishers left us with their strongest weapon, use it- charge people with Sedition .
(5)Ban books or delete the sections that you think can raise questions.
(6)Use economics for your advantage, take the credit for everything that is going good in your way,corruption should be the word used for other .
(7)Don't care if your policies are reaching the target group, it should not matters if the product is rotten your packaging and marketing should be appealing.
(8)Remember to save your energy for elections because people may vote you out and choose the other competitor in the market.
(9)Pretend to be the poorest, the backward so that you can easily dilute into the majority .
(10)Don't let people study or think too much because artistic or intellectual minds are dangerous. Deprive them from funds so that they cannot raise voice.
RESULT:-
A NATION OF FOOLS,
A SOCIETY SUFFERING FROM INTELLECTUAL MALNUTRITION .
I remember last year a play by students of Delhi University was banned by the student union.
I have the recorded play ,please see the recording
"INTOLERANCE" means "unwillingness to accept views,beliefs,or behaviors that differ from one's own".
But these activities seems to me like they are part of some MODEL .The model that could not be completed in previous years (eg. 1984,2002). Though current government has perfection in applying this model , the previous amateurs cannot be left out . Let's try to look at it
ASSUMPTIONS:-
(1)India is a Hindu nation.
(2)Only Politician or elites can practice "Freedom of speech".
(3) You can easily manipulate the Indian Minds.
(4)Today's youth is suffering from short term memory loss.
(5)All the citizens are too busy with their daily cious that no one cares what's going on in the parliament.
AIM:-
DISMANTLE THE LARGEST DEMOCRACY AND MAKE FUN OF SECULARISM.
STEPS TO FOLLOW:-
(1)Anything you don't like or enjoy just say "It's against our Culture".
(2)Always have Godmen at your side . Remember Karl Marx said "Religion is the opium of masses".
(3)Easiest way to legitimize some thing is through religion.
(4) Britishers left us with their strongest weapon, use it- charge people with Sedition .
(5)Ban books or delete the sections that you think can raise questions.
(6)Use economics for your advantage, take the credit for everything that is going good in your way,corruption should be the word used for other .
(7)Don't care if your policies are reaching the target group, it should not matters if the product is rotten your packaging and marketing should be appealing.
(8)Remember to save your energy for elections because people may vote you out and choose the other competitor in the market.
(9)Pretend to be the poorest, the backward so that you can easily dilute into the majority .
(10)Don't let people study or think too much because artistic or intellectual minds are dangerous. Deprive them from funds so that they cannot raise voice.
RESULT:-
A NATION OF FOOLS,
A SOCIETY SUFFERING FROM INTELLECTUAL MALNUTRITION .
I remember last year a play by students of Delhi University was banned by the student union.
I have the recorded play ,please see the recording
Tuesday, 3 November 2015
Thursday, 22 October 2015
धर्म
धर्म तो चाहे राम का हो या पॉटर का जीने का एक तरीका सिखाता है ,
बुराई पर अच्छाई की जीत का एक आईडिया समझाता है।
बुराई पर अच्छाई की जीत का एक आईडिया समझाता है।
यह वो समय है
यह वो समय है जब
कट चुकी है फसल
और नया बोने का दिन नहीं
खेत पड़े हैं उधारे
अन्यमन्सक है मिटटी सहसा धुप में पड कर -
हर थोड़ी दूर पर मेंडो की छाँह
चमकती है कटी खूँटियाँ
दूर पर चरती भेड़ो के रेवड़
और मुसकोल
और चीटियों के बिल के बाहर मिटटी चूर
यह वो समय है जब
शेष हो चुका है पुराना
और नया आने को शेष है
- अरुण कमल
(शाहित्य अकादमी अवार्ड विनर)
कट चुकी है फसल
और नया बोने का दिन नहीं
खेत पड़े हैं उधारे
अन्यमन्सक है मिटटी सहसा धुप में पड कर -
हर थोड़ी दूर पर मेंडो की छाँह
चमकती है कटी खूँटियाँ
दूर पर चरती भेड़ो के रेवड़
और मुसकोल
और चीटियों के बिल के बाहर मिटटी चूर
यह वो समय है जब
शेष हो चुका है पुराना
और नया आने को शेष है
- अरुण कमल
(शाहित्य अकादमी अवार्ड विनर)
Saturday, 17 October 2015
Sunday, 27 September 2015
"टोबा टेक सिंह"
मुझे वागाह पे टोबा टेक सिंह वाले "बिशन " से जा के मिलना है
सुना है वो अभी तक सूजे पैरॉ पर खड़ा है
जिस जगह "मंटो " ने छोड़ा था उसे
वो अब तक बुदबुदाता है
"ओप्पड़ दी गुड़ गुड़ दी मूंग दी दाल दी लालटेन "
पता लेना है उस पागल का
ऊंची डाल पर चढ़ कर जो कहता है
खुदा है वो उसे फैसला करना है किस का गाँव किस के हिस्से में आयेगा
वो कब उतरेगा अपनी डाल से
उसको बताना है
अभी कुछ और भी दिल हैं के जिन को बाँटने का ,काटने का काम ज़ारी है
वो बटवारा तो पहला था अभी कुछ और बंटवारे बाकि हैँ
मुझे वागाह पे टोबा टेक सिंह वाले बिशन से जा के मिलना है
खबर देनी है उसके दोस्त फ़ज़ल को
वो "लहना सिंह ","वधावा सिंह " वो "बेहेन अमृत"
वो सरे क़त्ल हो कर इस तरफ आये थे
उन की गर्दनें सामान ही में लुट गयी पीछे
ज़बह कर के वो "भूरी " अब कोई लेने न आएगा
वो लड़की इक उंगली जो बड़ी होती थी हर बारह महीने में
वो अब हर इक बरस इक पोटा पोटा घटती रहती है
बताना है के सब पागल पहुंचे नहीं अपने ठिकानो पर
बहुत से इस तरफ़ भी हैं बहुत से उस तरफ भी हैं
मुझे वागाह पे टोबा टेक सिंह वाला बिशन अक्सर यही कह के बुलाता है
"ओप्पड़ दी गुङ गुङ दी मूंग दी दाल दी लालटेन दी हिंदुस्तान ते पाकिस्तान दी दूर फिट्टे मुंह "
Friday, 25 September 2015
हिन्दू या मुस्लमान के अहसासात को मत छेड़ीए
अपनी कुर्सी के लिए जज्बात को मत छेड़िए
हममे कोई हूण,कोई शक ,कोई मंगोल है
दफ़न है जो बात ,अब उस बात को मत छेड़िए
गलतियाँ बाबर की थी ,जुम्मन का घर फिर क्यों जले
ऐसे नाजुक वक़्त में हालात को मत छेड़िए
है कहाँ हिटलर ,हलाकू , जार या चंगेज खाँ
मिट जाए सब ,कौम की औकात को मत छेड़िए
छेड़िए इक जंग ,मिल -जुल कर गरीबी के खिलाफ
दोस्त मेरे मजहबी नगमात को मत छेड़िए
-आदम जोंडवी
अपनी कुर्सी के लिए जज्बात को मत छेड़िए
हममे कोई हूण,कोई शक ,कोई मंगोल है
दफ़न है जो बात ,अब उस बात को मत छेड़िए
गलतियाँ बाबर की थी ,जुम्मन का घर फिर क्यों जले
ऐसे नाजुक वक़्त में हालात को मत छेड़िए
है कहाँ हिटलर ,हलाकू , जार या चंगेज खाँ
मिट जाए सब ,कौम की औकात को मत छेड़िए
छेड़िए इक जंग ,मिल -जुल कर गरीबी के खिलाफ
दोस्त मेरे मजहबी नगमात को मत छेड़िए
-आदम जोंडवी
Saturday, 19 September 2015
TRUE LOVE
True love. Is it normal
is it serious, is it practical?
What does the world get from two people
who exist in a world of their own?
Placed on the same pedestal for no good reason,
drawn randomly from millions but convinced
it had to happen this way – in reward for what?
For nothing.
The light descends from nowhere.
Why on these two and not on others?
Doesn’t this outrage justice? Yes it does.
Doesn’t it disrupt our painstakingly erected principles,
and cast the moral from the peak? Yes on both accounts.
Look at the happy couple.
Couldn’t they at least try to hide it,
fake a little depression for their friends’ sake?
Listen to them laughing – it’s an insult.
The language they use – deceptively clear.
And their little celebrations, rituals,
the elaborate mutual routines –
it’s obviously a plot behind the human race’s back!
It’s hard even to guess how far things might go
if people start to follow their example.
What could religion and poetry count on?
What would be remembered? What renounced?
Who’d want to stay within bounds?
True love. Is it really necessary?
Tact and common sense tell us to pass over it in silence,
like a scandal in Life’s highest circles.
Perfectly good children are born without its help.
It couldn’t populate the planet in a million years,
it comes along so rarely.
Let the people who never find true love
keep saying that there’s no such thing.
Their faith will make it easier for them to live and die.
-Wisława Szymborska
is it serious, is it practical?
What does the world get from two people
who exist in a world of their own?
Placed on the same pedestal for no good reason,
drawn randomly from millions but convinced
it had to happen this way – in reward for what?
For nothing.
The light descends from nowhere.
Why on these two and not on others?
Doesn’t this outrage justice? Yes it does.
Doesn’t it disrupt our painstakingly erected principles,
and cast the moral from the peak? Yes on both accounts.
Look at the happy couple.
Couldn’t they at least try to hide it,
fake a little depression for their friends’ sake?
Listen to them laughing – it’s an insult.
The language they use – deceptively clear.
And their little celebrations, rituals,
the elaborate mutual routines –
it’s obviously a plot behind the human race’s back!
It’s hard even to guess how far things might go
if people start to follow their example.
What could religion and poetry count on?
What would be remembered? What renounced?
Who’d want to stay within bounds?
True love. Is it really necessary?
Tact and common sense tell us to pass over it in silence,
like a scandal in Life’s highest circles.
Perfectly good children are born without its help.
It couldn’t populate the planet in a million years,
it comes along so rarely.
Let the people who never find true love
keep saying that there’s no such thing.
Their faith will make it easier for them to live and die.
-Wisława Szymborska
PHUDHU (पागल)
"यह पानी की बोंडे नहीं यह मेरे लहूँ के लछे हैं ,
हमे पागल रहने दो हम पागल ही अच्छे है।
जो निकालते हैं हम्मे गलतियाँ कहदो उन्हें वह बच्चे हैं ,
हमे पागल रहने दो हम पागल ही अच्छे है।
इधर की उधर लगाओगे मेरा दिल जलाओगे ,
क्या सोच के रखा था हम कानो के कच्चे हैं ,
हमे पागल रहने दो हम पागल ही अच्छे है।
चुप रहा तोह नाइंसाफी ,सच कहा तोह घुसताखी ,
बोल तोह कढ़वे लगने ही हैं क्यूकि हम दिल के सच्चे हैं ,
हमे पागल रहने दो हम पागल ही अच्छे है।
ना में शायर हूँ पल दो पल का ना पल दो पल मेरी कहानी है ,
ना में शायर हूँ पल दो पल का ना में आया हूँ पल दो पल के लिए ,
तुम आज तोह पत्थर बरसालो कल रोह्गे मुझ पागल के लिए ,
हमे पागल रहने दो हम पागल ही अच्छे है।"
हमे पागल रहने दो हम पागल ही अच्छे है।
जो निकालते हैं हम्मे गलतियाँ कहदो उन्हें वह बच्चे हैं ,
हमे पागल रहने दो हम पागल ही अच्छे है।
इधर की उधर लगाओगे मेरा दिल जलाओगे ,
क्या सोच के रखा था हम कानो के कच्चे हैं ,
हमे पागल रहने दो हम पागल ही अच्छे है।
चुप रहा तोह नाइंसाफी ,सच कहा तोह घुसताखी ,
बोल तोह कढ़वे लगने ही हैं क्यूकि हम दिल के सच्चे हैं ,
हमे पागल रहने दो हम पागल ही अच्छे है।
ना में शायर हूँ पल दो पल का ना पल दो पल मेरी कहानी है ,
ना में शायर हूँ पल दो पल का ना में आया हूँ पल दो पल के लिए ,
तुम आज तोह पत्थर बरसालो कल रोह्गे मुझ पागल के लिए ,
हमे पागल रहने दो हम पागल ही अच्छे है।"
Sunday, 13 September 2015
"हवा के सहारे"
हवा के सहारे टंगे हैं हम ,
न हमसे कोई महोबत करता है न नफरत,
न हमे कोई खरीदता है न हम किसी के हाथो बिकते है।
हम चाहते है सब हमारे साथ हों ,
हम चाहते हैं कुछ लोग हमारे साथ न हों ,
क्यों की लड़ने के लिए कोई तोह चाहिए इसलिए उनकी तरहफ भी कुछ लोग चाहते है।
वे हमे जानते है अछि तरह से ,
हम न क्रांति करते है न शांति से बैठते है।
न हम रुके हुऐ है न हम चलते है।
हमे हर वक़्त उन्ही का फ़ोन आता है,
जबकि हम किसी और की आवाज सुन्ने को बेताब है।
कभी हम अँधेरे से भागते है ,कभी रौशनी से ,
कभी अमावस्य की तरफ चल पढ़ते है ,
कभी चांदनी के निचे बैठ जाते है।
हम दूध भी पीते है ,
हम शराब भी पिटे है।
न हम सोते है ,न हम जागते है,
न हम हस्ते है नह हम रोते है।
हम कभी शहर में जंगल चाहते है ,
तोह कभी जंगल में शहर बसाना चाहते है।
न हम नियम का पालन करते है ,
न हम कोई नियम तोड़ते है।
न हम पढ़ते है,
न किताबो से दूर रहते हैं।
हमे अखबारों के पन्ने अछे नहीं लगते ,
इसलिए अखबारों को भी हम अछे नहीं लगते।
हम अपने कपड़ो से कम,
उनके कपड़ो से जड़ा परेशान है।
हम अपनी आँखों से नहीं उनके चश्मो से परेशान हैं।
जब हम सूरज बन जाते हैं तोह उनको हमसे डर लगता है,
जब हम चाँद बन जाते है तोह वोह हमे डराने लगते हैं।
जब हम खड़े हो जाते है तोह उनके पॉँव में दर्द होना शुरु हो जाता है ,
हम छुप जाते है तोह वह चेहरा सीधा कर घंटी बजाते हैं।
वह हमारी बढ़ी हुई दाढ़ी में खतरा सूँगते है ,
और हम उनके चिकने गालो पर पेड़ उगाना चाहते है।
वह चाहते है वह हमारी छत के निचे आजाए ,
पर कैसे हम तोह खुदही हवा में टंगे हैं ,
जहाँ न छत हैं न नीव।
न हमसे कोई महोबत करता है न नफरत,
न हमे कोई खरीदता है न हम किसी के हाथो बिकते है।
हम चाहते है सब हमारे साथ हों ,
हम चाहते हैं कुछ लोग हमारे साथ न हों ,
क्यों की लड़ने के लिए कोई तोह चाहिए इसलिए उनकी तरहफ भी कुछ लोग चाहते है।
वे हमे जानते है अछि तरह से ,
हम न क्रांति करते है न शांति से बैठते है।
न हम रुके हुऐ है न हम चलते है।
हमे हर वक़्त उन्ही का फ़ोन आता है,
जबकि हम किसी और की आवाज सुन्ने को बेताब है।
कभी हम अँधेरे से भागते है ,कभी रौशनी से ,
कभी अमावस्य की तरफ चल पढ़ते है ,
कभी चांदनी के निचे बैठ जाते है।
हम दूध भी पीते है ,
हम शराब भी पिटे है।
न हम सोते है ,न हम जागते है,
न हम हस्ते है नह हम रोते है।
हम कभी शहर में जंगल चाहते है ,
तोह कभी जंगल में शहर बसाना चाहते है।
न हम नियम का पालन करते है ,
न हम कोई नियम तोड़ते है।
न हम पढ़ते है,
न किताबो से दूर रहते हैं।
हमे अखबारों के पन्ने अछे नहीं लगते ,
इसलिए अखबारों को भी हम अछे नहीं लगते।
हम अपने कपड़ो से कम,
उनके कपड़ो से जड़ा परेशान है।
हम अपनी आँखों से नहीं उनके चश्मो से परेशान हैं।
जब हम सूरज बन जाते हैं तोह उनको हमसे डर लगता है,
जब हम चाँद बन जाते है तोह वोह हमे डराने लगते हैं।
जब हम खड़े हो जाते है तोह उनके पॉँव में दर्द होना शुरु हो जाता है ,
हम छुप जाते है तोह वह चेहरा सीधा कर घंटी बजाते हैं।
वह हमारी बढ़ी हुई दाढ़ी में खतरा सूँगते है ,
और हम उनके चिकने गालो पर पेड़ उगाना चाहते है।
वह चाहते है वह हमारी छत के निचे आजाए ,
पर कैसे हम तोह खुदही हवा में टंगे हैं ,
जहाँ न छत हैं न नीव।
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