मुझे वागाह पे टोबा टेक सिंह वाले "बिशन " से जा के मिलना है
सुना है वो अभी तक सूजे पैरॉ पर खड़ा है
जिस जगह "मंटो " ने छोड़ा था उसे
वो अब तक बुदबुदाता है
"ओप्पड़ दी गुड़ गुड़ दी मूंग दी दाल दी लालटेन "
पता लेना है उस पागल का
ऊंची डाल पर चढ़ कर जो कहता है
खुदा है वो उसे फैसला करना है किस का गाँव किस के हिस्से में आयेगा
वो कब उतरेगा अपनी डाल से
उसको बताना है
अभी कुछ और भी दिल हैं के जिन को बाँटने का ,काटने का काम ज़ारी है
वो बटवारा तो पहला था अभी कुछ और बंटवारे बाकि हैँ
मुझे वागाह पे टोबा टेक सिंह वाले बिशन से जा के मिलना है
खबर देनी है उसके दोस्त फ़ज़ल को
वो "लहना सिंह ","वधावा सिंह " वो "बेहेन अमृत"
वो सरे क़त्ल हो कर इस तरफ आये थे
उन की गर्दनें सामान ही में लुट गयी पीछे
ज़बह कर के वो "भूरी " अब कोई लेने न आएगा
वो लड़की इक उंगली जो बड़ी होती थी हर बारह महीने में
वो अब हर इक बरस इक पोटा पोटा घटती रहती है
बताना है के सब पागल पहुंचे नहीं अपने ठिकानो पर
बहुत से इस तरफ़ भी हैं बहुत से उस तरफ भी हैं
मुझे वागाह पे टोबा टेक सिंह वाला बिशन अक्सर यही कह के बुलाता है
"ओप्पड़ दी गुङ गुङ दी मूंग दी दाल दी लालटेन दी हिंदुस्तान ते पाकिस्तान दी दूर फिट्टे मुंह "
GULZAR GALI 15,16,17TH OCT NUKKAD ,SGTB KHALSA COLLEGE
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