Sunday 8 October 2017

मैं एक लड़की हूँ

 मैं एक लड़की हूँ
मैं जश्न मना रही थीं नए साल का
जब करदिया तुमने बेहाल सा
मुझ छूने की इजाज़त तुम्ने ना ली
और यही अहसास दिलाने की कोशिश की
तू लड़की है दर्दर के जी
शर्म तुम पर तो आती है
पर साथ साथ उन पर भी आती है
जिन्होंने तुम्ह जन्म दिया
तुम्हारे कुकर्मो का बोझ आपने सर पर लिया
शायद बताया नहीं  गया  यह तुमको
कैसे सम्मान करते है एक औरत का
यह भी हो सकता है
पता ना हो उन्हें तुम्हारी फितरत का
पर सच कहु सम्मान नहीं सम्मानता चाहिए
और सम्मानता इख़्तियार नहीं हक़ हैं मेरा
ख़ैर कुछ बोझ तो मेने भी सर लिया है
चंद लोगो ने मुझे ही गलत बता दिया
क्यूकि मैं छोटे कपडे पहनती हूँ
देर देर रात घर से बहार रहती हूँ
और यही समझके वह ठेकेदार
जो साल में कुछ दिन
मुझे दुर्गा लक्ष्मी के नाम से जानते है
और बाकि दिनों में मेरी तुलना
मुन्नी शीला लैला तंदूरी मुर्गी से करते है
जुस्सा आता है रोती भी हूँ
मगर अकेले में क्यूकि इल्म हैं मुझे इस बात का
के इस जमाने से लड़ने के लिए मुझे मजबूत रहना हैं
ताकि कल कोई खड़ा होकर यह ना बोले
शर्म तो औरत का गेहन्ना है
हद में उनको रहना हैं
जिन्होंने मुझसे बिना पूछे मेरी हद तय करदी हैं
और हाँ इन ओछे इल्जामों का
इन झूठी बातो का सामना आज से नहीं कर रहीं हूँ एक अर्सा होगया हैं 
कल द्रोपती बन कर किया था आज निर्भया बन कर रही हूँ मैं
कल किसी और शक्ल में किसी और रूप किसी और आवाज़ में करुँगी
पर करुँगी जरूर और एक दिन तुम्हारी मर्दांनगी को उसकी असल जगह दिखाकर
उस जीत का जश्न मनाऊँगी
मैं एक और वाद विवाद का हिस्सा हूँ
कौन ज्यादा फ़ाज़िल हैं कौन ज़्यादा बहतर हैं
लड़का या लड़की उन सब लड़कों को
जो ख़ुद को मुझसे बहतर मानते हैं
मैं एक सवाल पूछना चाहती हूँ
क्या कभी अंधेरे में घर से बहार जाने में घबराहट हुई हैं
क्या ऐसा लगा हैं कोई पीछेपीछ आएगा
बिना पूछे छुलेगा नहीं ना
मैं हर दिन उस डर को पीछे छोड़ घर से क़दम घर के बहार निकालती हूँ
फखर होता है ख़ुद पर के
मैं एक लड़की हूँ।

फखर होता है ख़ुद पर के
मैं एक लड़की हूँ।


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