मुझे तो यह लगता है,
जैसे किसी ने
यह साज़िश रची है।
के लफ्ज़ और माने में जो रिश्ता है
उसको जितना भी मुमकिन हो कमजोर कर दो
के हर लफ्ज़ बन जाए बेनामी आवाज
फिर सारी आवाजों को ऐसे घट मठ करो
ऐसे जुंड़ो के एक शोर कर दो
यह शोर एक ऐसा अंधेरा बुनेगा के
जिसमे भटक जाएँगे अपने लफ्ज़ो से बिछड़े हुए
सरे गूंगे महानी भटकते हुए रास्ता ढूंढ़ते
वक्त की खाई में गिर कर मर जाएंगे
और फिर आकर बाजार में खोखले लफ्ज़
बेबस जुलामो के मानिंद बिक जाएंगे
यह गुलाम अपने आकाओं के एक इशारे पर
इस तरह युरिश करेंगे के सरे ख़्यालात
की सब इमारत सारे जज़्बात के शिशाघर
मुलसिम हो कर रह जाएँगे हर तरफ जहन की
बस्तियों में यही देखने को मिलेंगे के एक अफ्रा तफ्री मची है
मुझे तो यह लगता है
के किसीने यह साज़िश रची है।
मगर कोई है जो यह कहता है मुझसे
के हैं आज भी लफ्ज़मानी के ऐसे परिशतारो शहादा
जो मानी को यूँ बेजबां लफ्ज़ को ऐसे नीलम होने ना देंगे
अभी ऐसे दीवाने है जो ख़्यालात का सारे जज्बात का दिल
की हर बात का ऐसा अंजाम होने ना देंगे
अगर ऐसे कुछ लोग हैं तो कहाँ हैं
वह दुनियाँ के जिस कोने में हैं
जहाँ हैं उन्हें यह बता दो के लफ्ज़ और मानी
बचने के ख़ातिर ज़रा सी मोहलत बची है
मुझे तो यह लगता है
के किसीने यह साज़िश रची है।
Love this poetry of jadu on kamra show...
ReplyDeletesame here bro
DeleteMasha Allah Kya KHub likha hai. Bahot Acche.
ReplyDeleteREally Amazing Article.
Javed Tadavi