Monday, 10 April 2017

By Javed Akhtar

मैं भूल जाऊँ तुम्हे अभ यही मुनासिब हैं। 
मगर भुलाना भी चाहु तो किस तरह भूलु 
के तुम तो फिरभी हकीकत हो कोई खाँभ नहीं 
यहाँ तो  यह आलम हैं मैं क्या कहुँ यह कबख़्त 
भुला सका ना वह सिलसिला जो कभी था  ही नहीं 
 वह एक ख्याल जो आवास तक जया ही नहीं  
वह एक बात जो मैं कह ना स्का तुमसे 
वह एक रपथ  सम्बन्ध
 वह  रपथ जो हममें रहा ही नहीं 
मुझे हैं याद सब जो कभी हुआ ही नहीं।।

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