तुम मिश्री की डली बन जाऔ,
मैं दूध बन जाता हूँ ,
तुम मुझमे घुल जाऔ।
ऐसा करो तुम ढाई साल की बच्ची बन जाऔ ,
मैं मिश्री घुला दूध हूँ मीठा ,
मुझे एक साँस में पी जाऔ।
अब मैं मैदान हूँ ,
तुम्हारे सामने दूर तक फैला हुआ ,
मुझमे दौड़ो। मैं पहाड़ हूँ।
मेरे कन्धो पर चङो और फिसलो ,
मैं सेमल का पेड़ हूँ ,
मुझे ज़ोर -ज़ोर से झकझोरो और
मेरी रुई को हवा की तमाम परतों में
बादलो के छोटे-छोटे टुकड़ों की तरह
उड़ जाने दो।
ऐसा करता हूँ की मैं
अखरोट बन जाता हूँ
तुम उसे चुरालो और किसी कौने में छुप कर उसे चुपचाप तोड़ो
जेहुँ का दाना बन जाता हूँ मैं ,
तूम धूप बन जाऔ ,
मिटी ,हवा ,पानी बन कर मुझे उगाओ।
मेरे भीतर के रिक्त कोशो में लुका छिपी खेलो ,
या कोपल होकर मेरी किसी भी गाँठ से कही से भी तुरंत फूट जाऔ।
तुम अँधेरा बन जाऔ ,
मैं बिल्ली बन दबे पाँव चलूँगा चोरी-चोरी।
क्यों न ऐसा करे मैं चीनी मिटी का प्याला बन जाऊ और तुम तश्तरी ,
और हम कही से गिर कर टूट जाते है सुबह-सुबह।
या मैं गुबारा बनता हूँ ,नील रंग का,
तुम उसके भीतर की हवा बन कर फेलो ,
और बीच आकाश में फ़ूट जाऔ।
या फिर हम ऐसा करते है ,के हम
कुछ और बन जाते है.……
मैं दूध बन जाता हूँ ,
तुम मुझमे घुल जाऔ।
ऐसा करो तुम ढाई साल की बच्ची बन जाऔ ,
मैं मिश्री घुला दूध हूँ मीठा ,
मुझे एक साँस में पी जाऔ।
अब मैं मैदान हूँ ,
तुम्हारे सामने दूर तक फैला हुआ ,
मुझमे दौड़ो। मैं पहाड़ हूँ।
मेरे कन्धो पर चङो और फिसलो ,
मैं सेमल का पेड़ हूँ ,
मुझे ज़ोर -ज़ोर से झकझोरो और
मेरी रुई को हवा की तमाम परतों में
बादलो के छोटे-छोटे टुकड़ों की तरह
उड़ जाने दो।
ऐसा करता हूँ की मैं
अखरोट बन जाता हूँ
तुम उसे चुरालो और किसी कौने में छुप कर उसे चुपचाप तोड़ो
जेहुँ का दाना बन जाता हूँ मैं ,
तूम धूप बन जाऔ ,
मिटी ,हवा ,पानी बन कर मुझे उगाओ।
मेरे भीतर के रिक्त कोशो में लुका छिपी खेलो ,
या कोपल होकर मेरी किसी भी गाँठ से कही से भी तुरंत फूट जाऔ।
तुम अँधेरा बन जाऔ ,
मैं बिल्ली बन दबे पाँव चलूँगा चोरी-चोरी।
क्यों न ऐसा करे मैं चीनी मिटी का प्याला बन जाऊ और तुम तश्तरी ,
और हम कही से गिर कर टूट जाते है सुबह-सुबह।
या मैं गुबारा बनता हूँ ,नील रंग का,
तुम उसके भीतर की हवा बन कर फेलो ,
और बीच आकाश में फ़ूट जाऔ।
या फिर हम ऐसा करते है ,के हम
कुछ और बन जाते है.……